ज़िन्दगी किसी को हो, अनेक पड़ावों से गुजरती है। हर ज़िन्दगी रामायण महाभारत सरीखा ही एक मोटे से ग्रन्थ जैसा कथ्य समेटे रहती है अपने अंदर। कितने अध्याय, कितने कांड, कितने रंग-रस-भाव। तो काल्पनिक सी एक ज़िन्दगी, जिसमें इधर उधर के पात्र आ-आ कर अपनी कथा-कहानी-अनुभव कानों में कहते गये और उन आवाज़ों को शब्दों का जामा पहना एक आकार दे दी हूं बस। आपको अच्छा लगा तो मेहनत का फल समझ स्वीकार कर लूंगी। ये कोई बड़े से लेखक की नहीं, पैंसठ साल की औरत की बड़बड़ाहट सरीखी पहली कहानी संग्रह है। इसके पहले कुछ टूटी-फूटी सी कवितायें लिखी थी। पाठको ने उसे पसंद किया, शायद इसे भी प्यार दें।