"जातिवाद: एक आग" जात-पात और ऊंच-नीच के कारण असामाजिक गतिविधियों का एक ज्वलंत वर्णन है। एक छोटे से गाँव में राम और अजय के नेतृत्व वाले दो समूहों के बीच लंबे समय से जाति-आधारित संघर्ष चल रहा है। दोनों पक्ष फसल के खेतों, सिंचाई के पानी और राजनैतिक शक्ति पर लड़ रहे हैं।
हृदय की विशालता, न्यायप्रियता तथा कर्त्तव्यपरायणता से बड़ा गुण तथा सबके साथ जाति, धर्म एवं राष्ट्रीयता का फर्क किये बिना, अपनों जैसा बर्ताव करना, अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये दूसरों का दिल न दुखाना से अच्छा कार्य और क्या हो सकता है भला?
- अरविन्द कुमार “मुन्ना”